क्षणभंगुर का सिद्धांत

इक्कीस साल बाद भी 
वह मुझे 
प्रत्येक क्षण 
नयीं लगती है 
बुद्ध के 
क्षणभंगुर के सिद्धांत 
की तरह 
हर क्षण वह बदल जाती है 
मैं भी हर क्षण जीता हूं 
उसके साथ और 
हर क्षण खुद भी बदलते हुए 
उसके क्षण के साथ 
हो जाता हूं एकाकार 
और प्रत्येक अगले क्षण में 
नवीन भी।

टिप्पणियाँ

  1. जीवनसंगिनी के संग समर्पण का भाव प्रदर्शित करता है

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  2. वाह..आदर्श प्रेम में प्रिय के प्रति प्रतिक्षण नवीनता का भाव महसूस होता है। घनानंद ने भी लिखा है-

    रावरे रूप की रीति अनूप, नयो नयो लागत ज्यों-ज्यों निहारिये।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद..प्रेम प्रत्येक युग मे अपने तरीक़े से प्रदर्शित होता रहा है

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