संदेश

मेरी दीर्घकालीन स्मृति

प्रत्येक बार  वो भूल जाती है  महत्वपूर्ण बातों को भी  फिर विभेद करती है  लघु कालीन स्मृति  दीर्घकालीन की स्मृति में  आइंस्टीन की भी  लघु कालीन स्मृति नहीं थी  और उसकी भी  प्रत्येक बुद्धिमान की भांति  दीर्घकालीन स्मृति है  और मैं  अपनी लघु कालीन स्मृति से  मंत्रमुग्ध करता हूं  लोगों को  जिनका बायां मस्तिष्क  कार्य ही नहीं करता  उलझ जाता हूं मैं  दाएं और बाएं मस्तिष्क में  वह फिर से  मेरी दीर्घकालीन स्मृति को  चिढाती है  प्रत्येक लघु काल में।

क्षणभंगुर का सिद्धांत

इक्कीस साल बाद भी  वह मुझे  प्रत्येक क्षण  नयीं लगती है  बुद्ध के  क्षणभंगुर के सिद्धांत  की तरह  हर क्षण वह बदल जाती है  मैं भी हर क्षण जीता हूं  उसके साथ और  हर क्षण खुद भी बदलते हुए  उसके क्षण के साथ  हो जाता हूं एकाकार  और प्रत्येक अगले क्षण में  नवीन भी।

कागज के फूल

 हर रोज वो बदल देता है  मेरी मेज के फूलदान में  रखे फूलों को  रोज ताजे फूल लाता है  और बाकी फूलों को  हटाता है  पर यह क्या  कागज के फूल  रख दिए उसने  अब ना नए रखता है  ना पुराने हटाता है  बिल्कुल हमारे प्रेम की भांति  पहले हम  पुराने फूलों की भांति  लड़ते थे  नए फूलों की भांति  मनाते थे  अब बस साथ रहते हैं  कागज के फूलों की भांति।

पेंड भी हंसे थे

वो पेंड भी  हंसे थे  हमारी जीने मरने की  बातें सुनकर  कितनी पीढ़ियों से  यही बातें सुनकर  आज भी  ये पेड़ हरे हैं।

शिकायत चश्मे की

कई बार  मेरा चश्मा  मुझसे शिकायत करता है कि  मैं उसके माध्यम से  बाहर देख लेता हूं  पर चश्मे को  अपनी आंखों के माध्यम से  नहीं देखने देता  अपने अंदर  फिर चश्मा  खुद ही चुप हो जाता  यह सोच कर कि  जब व्यक्ति स्वयं  नहीं देखता  अपने अंदर  तो सुन भी कैसे पाता  शिकायत चश्मे की।

जगत से बाहर

 एक रात स्वप्न में  मैं चांद पर था  और धरती को देखा  जैसे धरती से  हमेशा चांद को  देखता हूं  धरती को देखने के लिए  धरती से बाहर  चांद को देखने के लिए  चांद से बाहर  तो क्या  जगत को देखने के लिए  जगत से बाहर।

सोचा छाते ने

एक छाते में  हम दोनों थे  प्रेम की कसौटी पर  पर दोनों भीग गए  बारिश की बूंदो से  मैंने सोचा सकारात्मकता से  जैसे बूंदों ने  हमें भिगोया  हमारा प्रेम भी बूंदो से  सिंचित रहेगा सदा  पर क्या ऐसा बूंदो ने सोचा  यह सोचा उस  कम से कम छाते ने।